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ग्वालियर रियासत की स्थापना 18वीं सदी में मराठा साम्राज्य के उदय और मुगल साम्राज्य के पतन के कारण हुई।
उनका परिवार मराठों के सिंधिया वंश का हिस्सा है, जो कुणबी जाति से संबंधित है।
उनके परिवार का मूल महाराष्ट्र में है, जहां उनके पूर्वज बहमनी सल्तनत के अधीन शिलेदार (घुड़सवार) के रूप में काम करते थे।
इसका पहला शासक रानोजी सिंधिया था, जो पेशवा बाजीराव I का समर्थक और सेनापति था।
महादजी सिंधिया (1761–1794) के काल में, ग्वालियर रियासत मध्य भारत में एक प्रमुख शक्ति बनी, और मराठा संघ के मामलों पर प्रभुत्व करने लगी।
अंग्रेज-मराठा युद्धों में, ग्वालियर रियासत को ब्रिटिश सूजेरनिटी के अंतर्गत आना पड़ा, और यह ब्रिटिश हिंदुस्तान के प्रमुखीकृत राज्यों में से एक हो गया।
1947 में स्वतंत्रता के पश्चात, सिंधिया के शासकों ने नए संघ को स्वीकृति प्रदान की, और मप्र के नए हिंदुस्तानी प्रान्त में सम्मिलित होने के सहमति प्रकट की।
ग्वालियर रियासत के संस्थापकों में से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
- रानोजी सिंधिया (1731–1750): वह पहला शासक था, जिसने ग्वालियर को मराठा साम्राज्य का हिस्सा बनाया।
रानोजी सिंधिया का जन्म 1700 के आसपास हुआ था। वह मराठा परिवार से संबंधित थे, जो पहले बहमनी सल्तनत के शीलेदार (सवार) के रूप में सेवा करते थे।
रानोजी ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ की सेवा में शुरुआत की। पेशवा के पुत्र बाजीराव I के निजी सेवक के रूप में नियुक्त हुए, और मराठा सेना में सम्मानित स्थान प्राप्त किया।
1726 में, पेशवा ने मालवा क्षेत्र की प्रशासन रानोजी को सौंपी। रानोजी ने मुगल, राजपूत, और निजाम के साथ संघर्ष किया, और मराठा प्रभुत्व को स्थापित किया।
1731 में, रानोजी ने मुगल सम्राट मुहम्मद शाह से संधि की, और मुक्ति-लक्ष्मी, सुरत, और मलकनस, सहित 35 प्रकोंडों (प्रकंड) पर प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त किया।
1736 में, रानोजी ने महेश्वर, संतन, और 12 प्रकोंडों (prakond) पर प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त किया और होलकर, पवार, और भोंसले के साथ मिलकर मुगल साम्राज्य को कमजोर किया।
उन्होंने 1731 में उज्जैन में अपनी राजधानी स्थापित की, और 1736 में पेशवा की मुहर से सुसज्जित हुए।
उन्होंने 1745 में शुजालपुर में अपनी मृत्यु से पहले, अपने पुत्रों को अपनी समृद्धि का हिस्सा बनाया, और उनकी संतानों ने 18वीं से 20वीं सदी तक मप्र में प्रमुखीकृत राज्य का शासन किया।
- महादजी सिंधिया (1761–1794): वह सबसे प्रभावशाली शासक था, जिसने ग्वालियर को मध्य भारत में एक प्रमुख शक्ति बनाया।
महादजी सिंधिया का इतिहास बहुत ही गौरवशाली और प्रेरणादायक है। वह मराठा साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली और सम्मानित शासकों में से एक थे, जिन्होंने उत्तर भारत में मराठा प्रभुत्व को पुनर्स्थापित किया, और मुगल, अंग्रेज, राजपूत, और निजाम के साथ संघर्ष किया।
महादजी सिंधिया का जन्म 1730 में कन्हेरखेड (आज का सातारा) में हुआ था। वह रानोजी सिंधिया के पंचम पुत्र थे, जो मराठा सेना के सेनापति और पेशवा के सहयोगी थे।
महादजी सिंधिया ने 1757 में पेशवा की सेवा में प्रवेश किया, और 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में हिस्सा लिया, जहाँ उन्होंने मराठा सेना को पलायन करने में मदद की।
महादजी सिंधिया ने 1768 में मप्र की प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने के बाद, मुगल सम्राट शाह आलम II को 1771 में पुन: दिल्ली में स्थापित किया, और नैब-वकील-मुतलक (Deputy Regent of the Empire) की हैसियत से प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त किया।
महादजी सिंधिया ने 1775-1782 में हुए प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध में, पेशवा की सहायता की, और 1782 में हुई सलबाई की संधि (Treaty of Salbai)
महादजी सिंधिया ने फ्रांसीसी अधिकारियों की मदद से, अपनी सेना को आधुनिक बनाया, और राजपूत, मुगल, और निजाम के सेनाओं को पराजित किया।
महादजी सिंधिया ने 1785 में पेशवा के साथ मैत्री करके, मराठा संघ के मुख्य नेता का दर्जा प्राप्त किया, और मराठा प्रभुत्व को पुनर्जीवित किया।
महादजी सिंधिया ने 1790 में मैसूर के टीपू सुल्तान के साथ संधि की, और मैसूर-मराठा मित्रता को स्थापित किया।
महादजी सिंधिया ने 1794 में पुणे में अपनी मृत्यु से पहले, अपने पुत्रों को अपनी समृद्धि का हिस्सा बनाया, और उनकी संतानों ने 19वीं से 20वीं सदी तक मप्र, राजस्थान, और महाराष्ट्र में प्रमुखीकृत राज्यों का शासन किया।
यह कहना होगा कि उन्होंने मराठा साम्राज्य को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने मुगल सम्राट को सहायता की, और मुगल साम्राज्य के नैब-वकील-मुतलक (Deputy Regent of the Empire) की हैसियत से प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त किया।
महादजी सिंधिया को “कल्पतरु (wish-granting tree)” 4, “लक्ष्मी (goddess of wealth)” 4, “केशर (saffron)” 4, “केशव (another name of Krishna)” 4, “कल्प (era)” इन सभी उपाधियों से सम्मानित किया गया था, क्योंकि वह मराठा साम्राज्य के समृद्धि, शक्ति, प्रतिष्ठा, और धर्म के प्रतीक थे।
- दौलतराव सिंधिया (1794–1827): वह पहला शासक था, जिसने अंग्रेजों के साथ संधि की, और उनकी सूजेरनिटी को मान्यता प्रदान की।
दौलत राव सिंधिया का इतिहास बहुत ही उतार-चढ़ाव भरा और रोमांचक है। वह मराठा साम्राज्य के अंतिम और सबसे विवादित शासकों में से एक थे, जिन्होंने अंग्रेज के साथ युद्ध किया, और मराठा प्रभुत्व को कमजोर किया।
दौलत राव सिंधिया का जन्म 1779 में हुआ था। वह महादजी सिंधिया के पुत्र आनंदराव सिंधिया के पुत्र थे, जो 1767 में मृत्यु हो गए थे।
दौलत राव सिंधिया ने 1794 में 15 साल की उम्र में महादजी सिंधिया की मृत्यु के बाद, मप्र की राजगद्दी (throne) पर कुर्सी (seat) प्राप्त की, और नैब-वकील-मुतलक (Deputy Regent of the Empire) की हैसियत से प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने का हक प्राप्त किया।
दौलत राव सिंधिया ने 1795 में पेशवा के साथ संघर्ष किया, और 1796 में हुई पुन: संधि (Treaty of Poona) में, पेशवा को प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने का हक प्राप्त करने के साथ-साथ, महाराष्ट्र, मलकनस, सुरत, और 35 प्रकोंडों (prakond) पर प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने का हक प्राप्त किया।
दौलत राव सिंधिया ने 1803 में हुए प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध में, अंग्रेज के साथ संघर्ष किया, और लास्वारी, आलीगढ़, देल्ही, और अस्सय के चारों लड़ाई में हार कर, सुर्जी-अर्जुनगंज (Treaty of Surji-Arjungaon) में, मुक्ति-लक्ष्मी, सुरत, और 35 प्रकोंडों (prakond) को त्याग करना पड़ा।
दौलत राव सिंधिया ने 1805 में हुए तीसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध में, होलकर के साथ मिलकर पुन: अंग्रेज के साथ संघर्ष किया, परन्तु 1806 में हुई पुन: संधि (Treaty of Rajpurghat) में, महाराष्ट्र, मलकनस, और 16 प्रकोंडों (prakond) को त्याग करना पड़ा।
दौलत राव सिंधिया ने 1818 में हुई पुन: संधि (Treaty of Gwalior) में, महाराष्ट्र, मलकनस, 13 प्रकोंडों (prakond), 20 प्रति-संस्करण (chauth), 20 सर्देशमुखी (sardeshmukhi), 12 प्रति-संस्करण (chauth), 12 सर्देशमुखी (sardeshmukhi), 8 प्रति-संस्करण (chauth), 8 सर्देशमुखी (sardeshmukhi), 4 प्रति-संस्करण (chauth), 4 सर्देशमुखी (sardeshmukhi), 2 प्रति-संस्करण (chauth), 2 सर्देशमुखी (sardeshmukhi) को त्याग करना पड़ा, और अंग्रेज के सहयोगी बनना पड़ा।
दौलत राव सिंधिया ने 1827 में 48 साल की उम्र में मृत्यु हो गई, और उनके पुत्र जानकोजी राव सिंधिया II ने मप्र की राजगद्दी (throne) पर कुर्सी (seat) प्राप्त की।
- माधवराव सिंधिया (1886–1925): वह पहला शासक था, जिसने मोदर्नीकरण की पहल की, और समाजसुधार के पक्ष में काम किया।
माधव राव सिंधिया ग्वालियर के पांचवें महाराजा थे, जो मराठों के सिंधिया वंश के थे।
उनका जन्म 20 अक्टूबर 1876 को लश्कर में जय विलास महल में हुआ था।
उन्होंने 20 जून 1886 को सिंहासन पर बैठा, जब वे सिर्फ 10 साल के थे।
उनकी सत्ता में 1894 से 1925 तक ग्वालियर की समृद्धि, प्रगति और सुरक्षा हुई।
उन्होंने राजस्व प्रणाली, प्रशासन, न्याय, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सुधार की।
उन्होंने महाकालेश्वर मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, सुरेश्चंद्र मंदिर, मोती महल, सुंदर महल, महाराजा कॉलेज, सिंहोनिया कॉलेज, सी.पी. पोलीटेक्निक, सी.पी. हॉस्पिटल आदि का निर्माण कराया।
उन्होंने 1901 में किंग एडवर्ड VII को हेल्प करने के लिए होनररी Aide-de-camp की हैसियत से मुकर्रर किया गया, 1902 में केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से LL.D. (Honorary) प्राप्त किया, 1911 में Delhi Durbar में Knight Grand Commander of the Order of the Star of India (GCSI) से सम्मानित किया गया, 1918 में Knight Grand Cross of the Royal Victorian Order (GCVO) से सम्मानित किया गया और 1921 में Knight Grand Cross of the Order of the British Empire (GBE) से सम्मानित किया गया।
उनकी मृत्यु 5 जून 1925 को पेरिस में हुई।
जीवाजी राव सिंधिया -
जीवाजीराव सिंधिया 26 जून 1916 को ग्वालियर में महाराजा माधोराव I के पुत्र के रूप में पैदा हुए।
उन्होंने 5 जून 1925 को 9 साल की उम्र में सिंहासन पर बैठा, महाराजा माधोराव I के मृत्यु के बाद 4वें महाराजा सिंधिया के रूप में 1925 से 1948 तक ग्वालियर की रियासत को शासित किया।
उन्होंने 21 फरवरी 1941 को लेखा दिव्येश्वरी देवी, महारानी विजया राजे सिंधिया, से शादी की, जो नेपाल के मधेश प्रान्त के सेना प्रमुख की पुत्री थीं।
उन्होंने ग्वालियर की रियासत में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सुधार की।
उन्होंने 1947 में भारत की आजादी के बाद रियासत को संघ में शामिल करने का निर्णय लिया।
उन्होंने मध्य भारत के पहले राजप्रमुख के रूप में 1948 से 1956 तक कार्य किया।
उन्होंने 1950 में संविधान सभा में संविधान को स्वीकृति दी।
उन्होंने 1951 में संघीय परिषद में प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया।
प्रश्न: 18th century में Gwalior state का founder कौन हु?
पहला उत्तर: Ranoji Sindhia
प्रश्न: Gwalior state में Maratha Confederacy के affairs पर dominance establish करने में instrumental role play किसने किय?
पहला उत्तर: Mahadji सिंधिया
सिंधिया राजवंश से सम्बन्धित प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए कुछ प्रश्न इस प्रकार हैं:
MPPSC 2020:
सिंधिया राजवंश के संस्थापक कौन थे?
(a) रानोजी सिंधिया
(b) महादजी सिंधिया
(c) दौलतराव सिंधिया
(d) जानकोजीराव सिंधिया
UPSC 2019:
महादजी सिंधिया के शासन काल में, फ्रांसीसी अधिकारी बेनोइ डी बोने का कौन सा योगदान था?
(a) उन्होंने मराठा सेना को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(b) उन्होंने मराठा सेना को पुलिस के रूप में काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(C) उन्होंने मराठा सेना को प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(d) उन्होंने मराठा सेना को प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
BPSC 2009:
महादजी सिंधिया के कौन से उपलक्ष्य पर, मुगल सम्राट शाह आलम II ने, “कल्पतरु”, “लक्ष्मी”, “केशर”, “केशव”, “कल्प” आदि प्रतीकों से सम्मानित किया?
(a) मुगल को पुन: सम्राट प्रति संस्करण (chauth) प्राप्त करने पर
(b) मुगल को पुन: सम्राट प्रति संस्करण (chauth) प्राप्त करने पर
(c) मुगल को पुन: सम्राट प्रति संस्करण (chauth) प्राप्त करने पर
(d) None of the above
UPSC 2018:
महादजी सिंधिया के शासन काल में, फ्रांसीसी अधिकारी डी बोइन का कौन सा योगदान था?
(a) उन्होंने मराठा सेना को प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(b) उन्होंने मराठा सेना को पुलिस के रूप में काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(C) उन्होंने मराठा सेना को प्रति-संस्करण (chauth) प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
(d) None of the above
MPPSC 2017:
सिंधिया राजवंश के संस्थापक कौन थे?
(a) रानोजी सिंधिया
(b) महादजी सिंधिया
(c) दौलतराव सिंधिया
(d) जानकोजीराव सिंधिया
UPPSC 2016:
महादजी सिंधिया के समकालीन पेशवा कौन थे?
(a) माधवराव I
(b) माधवराव II
(c) नारायणराव
(d) सवाई माधवराव
ग्वालियर रियासत का इतिहास
भारत में मध्य प्रदेश की स्थिति
· मध्य प्रदेश का पहला नगर निगम जबलपुर में 1864 में ब्रिटिश काल में बनाया गया।
· मध्य प्रदेश की पहली नगर पालिका दतिया में 1907 में बनाई गई
· मध्य प्रदेश का पहला आकाशवाणी केंद्र इंदौर में 1955 में स्थापित किया गया।
· मध्य प्रदेश में पहला बौद्ध विश्वविद्यालय सांची रायसेन में स्थापित किया गया।
· मध्यप्रदेश देश का पहला वनों का शत प्रतिशत राष्ट्रीयकरण करने वाला पहला राज्य है।
· मध्यप्रदेश में हीरा उत्खनन में पहला स्थान है।
· विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग भोजपुर रायसेन जिले में है।
· विश्व के सबसे पुराने शैलचित्र भीमबैठका में है। इसे विश्व विरासत घोषित किया गया है।
· प्रदेश का पहला संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से है।
· मध्य प्रदेश का पहला संगीत विश्वविद्यालय ग्वालियर में राजा मान सिंह तोमर के नाम से स्थापित किया गया है।
· मध्य प्रदेश में पहला एफएम आकाशवाणी केंद्र इंदौर में स्थापित किया गया था।
· मध्य प्रदेश का पहला आकाशवाणी केंद्र भी इंदौर में स्थापित किया गया।
· मध्यप्रदेश की पहली जल विद्युत परियोजना गांधीसागर जल विद्युत केंद्र है।
· मध्य प्रदेश का पहला ताप विद्युत केंद्र चांदनी ताप विद्युत केंद्र है।
· मध्य प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय डॉक्टर हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय है, जो वर्तमान में केंद्रीय विश्वविद्यालय भी है।
· मध्य प्रदेश का पहला राष्ट्रीय उद्यान कान्हा किसली मंडला में है। इसमें हवाई पट्टी भी स्थित है।
· मध्य प्रदेश का पहला समाचार पत्र ग्वालियर गजट उर्दू भाषा में प्रकाशित किया गया था।
· मध्य प्रदेश का पहला हिंदी समाचार पत्र मालवा अखबार था।
· मध्यप्रदेश में सबसे पहले प्रोजेक्ट टाइगर कान्हा किसली में बनाया गया।
· मध्य प्रदेश का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व पचमढ़ी में स्थापित किया गया।
· मध्यप्रदेश में एकमात्र सिक्युरिटी पेपर मिल होशंगाबाद में है।
· मध्यप्रदेश में एक मात्र बैंक नोट प्रेस देवास में है,
· मध्य प्रदेश का पर्यटन नगर प्रथम शिवपुरी हैं।
· मध्यप्रदेश के जबलपुर में मध्य प्रदेश का पहला बेलों ड्रम स्थापित किया गया है।
· रीवा जिले में सफेद शेर पाये जानते हैं जो की एकमात्र जिला है।
· मध्य प्रदेश की एकमात्र महिला जेल होशंगाबाद में है।
· मध्यप्रदेश का एकमात्र सैनिक स्कूल रीवा में है।
· मध्यप्रदेश राज्य स्तरीय मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित करने वाला देश का पहला राज्य है।
· देश का एकमात्र इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल में है।
· देश का पहला आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल में स्थापित किया गया है।
· हिंदी भाषा में गजट प्रकाशित करने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य है।
· देश का एकमात्र आदिवासी शोध संचार केंद्र मध्यप्रदेश के झाबुआ में स्थापित है।
· मध्यप्रदेश के जबलपुर में देश का पहला विकलांग पुनर्वास केंद्र स्थापित किया गया है।
· देश का पहला रत्न परिष्कृत केंद्र जबलपुर में स्थापित किया गया है।
· एशिया का सबसे बड़ा सोयाबीन संयंत्र उज्जैन में स्थापित किया गया है।
· देश में पहला सोयाबीन वायदा बाजार इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया।
· मध्य प्रदेश की पहली नहर सन 1923 में बालाघाट जिले में बैनगंगा नहर बनाई गई थी।
· देश का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंगों उज्जैन में महाकालेश्वर है।
· केंद्र सरकार के द्वारा इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना मध्यप्रदेश के अमरकंटक में की गई है।
· मध्यप्रदेश के खजुराहो को सबसे पहले यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में 1986 में सम्मिलित किया गया।
· साँची को 1989 में भीमबेटका को सन् 2003 में इस सूची में सम्मिलित किया गया।
· मध्यप्रदेश में पहली और देश की तीसरी डी एन ए प्रयोगशाला की स्थापना सागर में की गई।
· मध्यप्रदेश में धर्मांतरण को रोकने और इस पर नियंत्रण के लिए मध्यप्रदेश धर्म नियंत्रण अधिनियम, 1968 में पारित किया गया।
· विश्व में पहली बार मानव विकास रिपोर्ट 1990 में लंदन में तैयार की गई थी।
· देश में पहली बार जिला स्तर पर मानव विकास रिपोर्ट मध्यप्रदेश में राजगढ़ जिले से हुई।
· मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर है, जहाँ जेम्स और ज्वेलरी पार्क की स्थापना का भी प्रस्ताव है।
· देश का पहला ऑप्टिकल फाइबर कारखाना मंडीदीप रायसेन में स्थापित किया गया है।
· देश का पहला मोबाइल बैंक मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत हैं।